भूकम्प(Earthquake) अत्यन्त विनाशकारी आपदाओं में से एक है। पृथ्वी की सतह से कुछ किलोमीटर तक गहराई में स्थित चट्टानों में उपस्थित दरारों, भ्रंशों, कमजोर सतहों पर परस्पर टकराव, गति, हलचल, घर्षण आदि से उत्पन्न एवं प्रसारित कम्पन जो उत्पत्ति केन्द्र से चारों तरफ प्रसारित होकर सतह पर स्थित वस्तुओं आदि को हिला-डुला कर असन्तुलित कर देती है, भूकम्प कहा जाता है। कुछ ऐसी भी सूक्ष्म तरंगें होती हैं जिन्हें मनुष्य अनुभव नहीं कर पाता किन्तु संवेदनशील प्राणी जैसे—कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़, पक्षी आदि द्वारा अनुभव कर लिया जाता है। आधुनिक भूकम्पीय यंत्र द्वारा ऐसी तरंगे भी रिकॉर्ड की जा सकती हैं।
भूकम्प के कारण –
पृथ्वी एक गतिशील एवं सक्रिय ग्रह है।इसकी सबसे ऊपरी सतह क्रस्ट का निर्माण करने वाले विशाल भूखण्ड तथा जलमण्डल की रचना करने वाली विशाल प्रस्तरीय प्लेटें अति प्रत्यास्थ एवं सान्द्र प्रकृति की भीतरी सतह मैंटिल में उत्पन्न संवहन तरंगों के कारण निरन्तर गतिशील, संघनित एवं प्रसारित हुआ करती हैं। इसका मूल कारण पृथ्वी का केन्द्रीय भाग है जो अति रेडियोधर्मिता तथा अत्यधिक दाब के कारण 3000°C से अधिक तक गर्म होता है।
इस प्रकार के उत्पन्न संवहन तरंगों के कारण सतह की प्लेटें परस्पर गति करती रहती हैं, जिसे भूविवर्तनिकी कहा जाता है। पर्वत, समुद्र, मैदान, पठार, द्वीप आदि की उत्पत्ति का कारण यही गतियाँ हैं। यही वह प्रक्रिया है जिसके कारण हमारी पृथ्वी पर आज जैसी जलवायुविक जैविक एवं प्राकृतिक विविधता है। क्षेत्र विशेष में खनिजों की उत्पत्ति आदि भी इसी प्रकार के विवर्तन का परिणाम है।
भूकम्प केन्द्र –
पृथ्वी की सतह के नीचे जिस स्थान पर भूखण्डीय प्लेटें टकराती है या जहाँ से आन्तरिक संघनित ऊर्जा-दरारों, भ्रंशों आदि के अनुसार त्वरित कम्पनों को जन्म देती हैं, उस स्थान को भूकम्प केन्द्र कहा जाता है।
अभिकेन्द्र –
भूगर्भ में स्थित केन्द्र के सापेक्ष पृथ्वी की सतह पर स्थित उस बिन्दु को जहाँ तरंगे सतह पर टकराती हैं, अभिकेन्द्र कहा जाता है। यहाँ भूकम्प की तरंगे सबसे पहले पहुँचती हैं। उनका प्रभाव भी सर्वाधिक होता है।
परिमाण –
भूकम्प के माध्यम से अवमुक्त हुई ऊर्जा का आकलन ही परिमाण कहलाता है। परिमाण को अंकों के रूप में प्रदर्शित किया सकता है।
भूकम्पीय तरंगों के प्रकार –
प्राथमिक या प्रधान तरंग –
अनुप्रस्थ तरंगें प्रकृति के औसत आयाम के कम्पन होते हैं। यह भूकम्प केन्द्र से कई सौ किलोमीटर तक प्रसासित होती हैं। इन्हें सर्वप्रथम अनुभव किया जा सकता है।
द्वितीयक या अनुप्रस्थ तरंगें –
अनुप्रस्थ तरंगे प्रकृति के औसत आयाम के कम्पन होते हैं। यह अधिक हानि नहीं कर पाती हैं। यह ठोस चट्टानों से गुजर सकती हैं।
धरातलीय तरंगें –
यह पृथ्वी की सतह के समान्तर प्रवाहित होने के कारण सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं। यह पृथ्वी की सतह को अगल-बगल हिलाती हैं।
रेलें तरंगें –
सबसे अधिक कम्पन इन्हीं तरंगों के कारण होता है। ये तरंगें पृथ्वी की सतह पर लुढ़कती हैं।
भूकम्प का आकलन –
भूकम्प का आकलन स्केल द्वारा किया जाता है। रिक्टर द्वारा 1958 ई० में गुणात्मक आकलन के आधार पर जो स्केल बनाया गया, उसे ‘रिक्टर स्केल’ कहा जाता है। आजकल यही प्रचलित है। इसमें तीव्रताओं के अनुसार I से XII तक का स्केल वर्णित है। स्केल I से स्केल II में परिमाण की शक्ति का अन्तर 32 गुना होता है।
भूकम्प की दृष्टि से भारत का विभाजन –
भारत सरकार के नगरीय विकास मंत्रालय द्वारा बी० एम० टी० पी० सी० के सहयोग से प्रकाशित घातकता मानचित्रावली में सम्पूर्ण भारत को भूकम्पीय दृष्टि से चार भागों में विभाजित किया गया है –
जोन I – इसके अन्तर्गत तमिलनाडु, उत्तर-पश्चिमी राजस्थान, मध्य प्रदेश का उत्तरी भाग, पूर्वी राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिमी उड़ीसा तथा प्रायद्वीपीय पठार के आन्तरिक भाग सम्मिलित हैं।
जोन II -इसके अन्तर्गत उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार सम्मिलित हैं।
जोन III – इसके अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश एवं बिहार का उत्तरी मैदानी भाग तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश सम्मिलित है।
जोन IV -इसके अन्तर्गत हिमालय पर्वत श्रेणी, नेपाल, बिहार-सीमावर्ती क्षेत्र, उत्तर-पूर्व राज्य तथा कच्छ प्रायद्वीप और अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह सम्मिलित हैं।