सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के लौह पुरुष के रूप में पहचाने जाते हैं। उन्होंने लगभग 200 वर्षो की गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े अलग-अलग राज्यों को संगठित कर भारत में मिलाया और इसे एक विशाल देश बनाया।
वल्लभ भाई का जन्म नाडियाड गाँव में एक मध्यमवर्गीय लेवा पाटीदार जाति के एक परिवार में हुआ था। इनकी शुरुआती पढ़ाई गुजराती मिडीयम स्कूल से हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1910 ई० में क़ानून की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड चले गए।
1913 ई० में डिग्री प्राप्त कर वे भारत आ गए और गुजरात के गोधरा में वकालत शुरू की। वे गोधरा से अहमदाबाद आ गए, वहाँ वे गांधीजी से प्रभावित हुए और उन्होंने गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाने का फ़ैसला ले लिया।
1918 ई० में उन्होंने एक ‘नो टैक्स अभियान’ की शुरुआत की। इस आंदोलन के कारण अंग्रेज़ी सरकार को किसानों से ली हुई भूमि वापस करनी पड़ी। उनके इन प्रयासों के कारण उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी गई।
1917 ई० में वे अहमदाबाद के प्रथम स्वच्छता आयुक्त के रूप में चुने गए। उसके बाद वे कांग्रेस पार्टी के गुजरात सभा के सचिव निर्वाचित हुए। 1920 ई० में उन्हें गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष चुना गया।
1930 ई० में नमक आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल भेजा गया। 1931 ई० में उन्हें कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया।
1942 ई० में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में उन्होंने, गांधीजी के साथ पूरे देश का दौरा किया, जिसके कारण वे जेल गए और 1945 ई० में रिहा हुए।
स्वतंत्रता से कुछ ही समय पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने एक अलगाववादी आंदोलन की शुरुआत की, जिसके कारण काफ़ी दंगे हुए। सरदार पटेल का मानना था की इस साम्प्रदायिक संघर्ष के कारण केंद्र की सरकार कमजोर रह जाएगी, अतः समाधान के रूप में, राज्यों के धार्मिक सुझाव के आधार पर एक अलग राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव को उन्होंने स्वीकार कर लिया।
स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल ने देश के पहले गृहमंत्री के साथ-साथ उप प्रधानमंत्री के पदभार को भी संभाला।
भारत की लगभग 562 रियासतों को सफलतापूर्वक एक साथ संगठित किया लेकिन जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद को शामिल करने में उन्होंने बेहद संवेदनशील राजनीतिक सूझबूझ का परिचय भी दिया।
रियासतों को एक साथ जोड़ने में उनकी सफलता के कारण वे ‘लौह पुरुष’ कहलाने लगे।
सितंबर 1947 ई० में कश्मीर पर आक्रमण करने के पाकिस्तान के प्रयासों पर उन्होंने पानी फेर कर भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाया। उन्होंने कभी भी राष्ट्र के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया।
सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन 1991 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया, वे हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।