राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन

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National Translation Mission
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प्र०1.  राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission —NTM) क्या है?
उ०- यह भारत सरकार की परियोजना है जिसका उद्देश्य अनुवाद को एक उद्योग के रूप में स्थापित करना एवं अनुवाद के माध्यम से छात्रों एवं शिक्षकों को भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा की पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराना है।
यह भारत के मैसूर स्थित भारतीय भाषा संस्थान की नवीनतम शैक्षिक-सांस्कृतिक परियोजना है। श्री उदय नारायण सिंह इसके अध्यक्ष हैं। इसकी घोषणा वित्त मंत्री ने हाल ही में अपने बजट भाषण के दौरान की। वर्तमान में अधिकांश ऑनलाइन सामग्री केवल अंग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध है। यह मिशन यह सुनिश्चित करेगा कि डिजिटल सामग्री अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नहीं रखने वाले भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए सुलभ हों।

प्र०2.  इस परियोजना का उद्देश्य क्या है?
उ०- भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में वर्णित भाषाओं हेतु –
*  महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले सभी मुख्य विषयों के पाठ्यक्रमों के अनुवाद को प्रोत्साहन देना एवं उनका प्रकाशन करना।
*  ज्ञान पर आधारित उच्च गुणवत्तायुक्त  पुस्तकों का भारतीय भाषा में अनुवाद करना ।
*  अनुवाद के उपकरणों (शब्दकोश एवं साफ्टवेयर) का विकास आदि।
*  अनुवादकों का शिक्षण करना।
*  वैज्ञानिक एवं तकनीक शब्दावली का सृजन एवं विकास करना।
*  मशीन आधारित अनुवाद को बढ़ावा देना।

प्र०3.  अनुवाद की कला के प्रमुख गुण क्या हैं?
उ०- किसी भाषा का अनुवाद करना एक कला ही नहीं अपितु विज्ञान भी है। निरंतर अभ्यास , अनुशीलन तथा अध्ययन आदि से इसमें कार्य कुशलता की पहचान होती है क्योंकि उसके सामने अनुवाद के समय दो भाषाएँ होती हैं। उन दोनों भाषाओं के स्वरूप तथा मूल प्रकृति एवं प्रवृत्ति का गहन अध्ययन, अनुशीलन करना अनुवादक का प्रथम कार्य माना जाता है।
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प्र०4.  अनुवाद विज्ञान क्या है?
उ०- विज्ञान शब्द का सामान्य अर्थ है— विशिष्ट ज्ञान। अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक भाषा के विचारों, भावों, छवियों आदि को दूसरी भाषा में व्यक्त किया जाता है। इसी कारण अनुवाद का सीधा संबंध भाषा के विज्ञान से अर्थात् भाषा विज्ञान से होता है।

प्र०5.  अनुवाद की उपयोगिता क्या है?
उ०- किसी भाषा का अनुवाद विश्व संस्कृति, विश्व बंधुत्व, एकता और समरसता स्थापित करने का एक ऐसा सेतु है। इसके द्वारा विश्व ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में क्षेत्रीयतावाद के संकुचित दायरे से बाहर निकलकर मानवीय एवं भावनात्मक एकता के केंद्रबिंदु तक पहुंच सकता है। यही अनुवाद की आवश्यकता और उपयोगिता है।

प्र०6.  अनुवाद से क्या आशय है?
उ०- अनुवाद अर्थात् अनु+वाद। अनु का अर्थ है— पीछे या बाद में और वाद का अर्थ है —कहना अर्थात् किसी भाषा में अभिव्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में यथावत् प्रस्तुत करना ही अनुवाद हैं। उससे जिस नई भाषा में अनुवाद करना है, वह प्रस्तुत भाषा या लक्ष्य भाषा है। इस तरह स्रोत भाषा में प्रस्तुत भाव या विचार को बिना किसी परिवर्तन के लक्ष्य भाषा में प्रस्तुत करना ही अनुवाद कहलाता है।

प्र०7.  स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा में क्या अंतर है?
उ०- अनुवादिक प्रक्रिया में जिस भाषा से अनुवाद किया जाता है, उसे स्रोत भाषा कहते हैं और जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है, उसे लक्ष्य भाषा कहते हैं। स्रोत भाषा को प्रायः मूल पाठ तथा लक्ष्य भाषा को अनुदित पाठ भी कहा जाता है।

प्र०8.  साहित्य अनुवाद से क्या तात्पर्य है?
उ०- साहित्य अनुवाद वास्तव में एक सर्जनात्मक और सांस्कृतिक कार्य है। इस कार्य के द्वारा भाषिक विनियम के माध्यम से एक भिन्न संस्कृति को लक्ष्य भाषा की संस्कृति में विन्यस्त किया जाता है, इसलिए यह कार्य सांस्कृतिक, सामयिक और नैतिक मूल भी होता है।

प्र०9.  अनुवाद के कितने प्रकार होते हैं?
उ०- अनुवाद के निम्नलिखित प्रकार होते हैं –
(i) पर्याय पर आधारित अनुवाद – इस अनुवाद में पर्याय के आधार पर अनुवाद की आवश्यकता रहती है। मूल भाषा के शब्दों को समझकर लक्ष्य भाषा में उसके समतुल्य शब्द खोजना और प्रयोग करना आवश्यक होता है।
(ii) विषय-वस्तु पर आधारित अनुवाद – इसके अंतर्गत तकनीक साहित्य, सरकारी साहित्य, विधि साहित्य, सृजनात्मक साहित्य दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीतिक विषय, संचार क्षेत्र आदि में अनुवाद किए जाते हैं।
(iii)शब्दानुवाद- जब मूल भाषा की सामग्री के प्रत्येक शब्द का अनुवाद उसी रूप में लक्ष्य भाषा में किया जाता है तो उसे शब्दानुवाद कहते हैं। यहाँ अनुवादक का लक्ष्य भाषा के विचारों को रूपांतरित करने से अधिक शब्दों को यथावत् अनुदित करने से होता है।
(iv) भावानुवाद – इसमें मूल रचना के भाव को पूर्णत:अनुदित रचना में अभिव्यक्त किया जाता है।
(v) सारानुवाद – लंबी रचनाओं, लंबे भाषणों, राजनीतिक वार्ताओं , काव्य रचनाओं का उनके कथ्य तथा मूल तत्वों की पूर्णतः रक्षा करते हुए संक्षेप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया सारानुवाद कहलाती है।
(vi) छायानुवाद – इसमें अनुवादक मूल रचना को पढ़कर इसका जो प्रभाव उसके मन और मस्तिष्क पर पड़ता है उसी के आधार पर अनुवाद करता है।
(vii) व्याख्यानुवाद – इसमें मूल कृति की व्याख्या भी अनुवाद के साथ-साथ की जाती है।
(viii) आशु अनुवाद – इसे तुरंत अनुवाद भी कहा जाता है।इस अनुवाद को दुभाषिया भी कहते हैं। दुभाषिया आम जनता की भाषा में मुख्य बात का अनुवाद करता चलता है।

प्र०10.  अच्छे अनुवाद की विशेषताएँ क्या हैं?
उ०- इसके लिए अनुवादक को –
*  भाषाओं का समुचित ज्ञान होना चाहिए।
*  उसे संबंधित विषय का संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
*  उसके अपने विचार होने चाहिए।
*  उसे व्याकरण का ज्ञान होना चाहिए।
*  उसमें प्रमाणिकता व मौलिकता के गुण होना चाहिए।

प्र०11.  आदर्श अनुवादक के गुण क्या होने चाहिए?
उ०- आदर्श अनुवादक में स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा पर अधिकार होने के साथ-साथ दोनों भाषाओं की प्रकृति एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि तथा परिवेश का भी संपूर्ण ज्ञान होना चाहिए। उसे मुहावरे एवं लोकोक्तियों का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

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